शनिवार, 13 सितंबर 2008

कोडरमा में नरेगा भुगतान के लिए दर-दर भटक रहे है मजदूर

नरेगा में काम किया, पर भुगतान सिफर है. यह फरियाद कोडरमा प्रखंड अंतर्गत गांव बेहराडीह के मजदूरों की है. वर्ष 2007 के जनवरी एवं फरवरी माह में नरेगा के तहत किशुनपुर तालाब एवं बेहराडीह विद्यालय के समीप की जमीन का समतलीकरण का कार्य हुआ. इसमें 60 दिनों तक प्रतिदिन 66 मजदूरों ने काम किया। काम तो हो गया, लेकिन पिछले 20 माह से बकाया मजदूरी के भुगतान को लेकर मजदूर दर-दर भटक रहे है. लिहाजा दिसंबर, 07 तक भुगतान नहीं होने की स्थिति में मजदूरों ने अनुमंडल दंडाधिकारी के न्यायालय में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत मुकदमा 1/08 दाखिल किया था और उसमें तत्कालीन बीडीओ और पंचायत सेवक को द्वितीय पक्ष बनाया. इसमें कुल 21 तारीखें पड़ चुकी हैं, लेकिन मात्र एक ही बार द्वितीय पक्ष अनुमंडल दंडाधिकारी के न्यायालय में हाजिर हुए. मामले की जटिलता को देखते हुए अनुमंडल दंडाधिकारी बसंत कुमार दास ने श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी से जांच कर इस संबंध में रिपोर्ट भी प्रस्तुत करने को कहा. श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी ने जांच प्रतिवेदन समर्पित करते हुए स्पष्ट किया कि सभी मजदूर 52 कार्य दिवस तक के लिए नियोजित किए गए. इसके बाद भी भुगतान नहीं हो पाया. स्कूल समतलीकरण का काम बिना प्रशासनिक एवं तकनीकी स्वीकृति के ही करा दिया गया है. स्वीकृति की प्रत्याशा में मजदूरों का भुगतान रुका हुआ है. स्पष्ट है कि प्रति मजदूर लगभग पांच-पांच हजार रुपए की मजदूरी का बकाया है. सो, मजदूर परेशान है। तत्कालीन पंचायत सेवक विरंची पांडेय को योजनाओं के देखरेख हेतु प्रतिनियुक्त किया गया था. संप्रति वे सतगावां में कार्यरत है. प्रश्न यह उठ रहा है कि यदि बिना प्रशासनिक और तकनीकी स्वीकृति के काम हुए तो इसमें दोषी कौन है? मजदूरों ने मजदूरी की और अपने वाजिब हक के लिए कई माह से लड़ रहे है. उनके समक्ष जीवन-यापन की समस्या उठ खड़ी हुई है.

1 टिप्पणी:

Waterfox ने कहा…

यह तो अन्याय है। क्या आपने या किसी और ने इस बात की जानकारी मीडिया को दी? यदि नहीं तो ऐसा कीजिये, एक बार यह ख़बर राष्ट्रीय मीडिया में आए तो कुछ तो उम्मीद बंधेगी.