सोमवार, 13 जुलाई 2009

कोडरमा में लोजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष समेत छह गिरफ्तार


कोडरमा थाना पुलिस ने लोकजनशक्ति पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष समेत छह लोगों को गिरफ्तार किया है। इन सबों को आज कोडरमा जेल भेज दिया गया। गिरफ्तार होने वालों में लोजपा का जिलाध्यक्ष और झुमरीतिलैया नगर अध्यक्ष भी शामिल है। कोडरमा थाना प्रभारी सीपी यादव ने जानकारी देते हुए बताया कि रात में इन सबों के द्वारा कोडरमा घाटी स्थित दिबौर स्टैंड पर स्टैंड ठीकेदार और वीडियोग्राफी कर रहे लोगों को धमकी देते हुए उनसे पांच सौ रूपये छीन लिये। इस संबंध में कोडरमा एसपी क्रांति कुमार गडदेशी के निर्देष पर चेकनाका पर इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस मामले में अनिल कुमार राजवंशी के द्वारा प्राथमिकी भी दर्ज करायी गयी है। इसके साथ ही उक्त सभी लोग कोडरमा कोर्ट परिसर में हुई फायरिंग की घटना में भी शामिल थे। गिरफ्तार होने वालों में लोजपा प्रदेश उपाध्यक्ष महेश राय, जिलाध्यक्ष सच्चिदानन्द गांधी, मनोज सिंह, रंजीत कुमार, धीरज सिंह और लोजपा का नगर अध्यक्ष विजय शुक्ला शामिल है। इधर महेश राय ने उसपर लगे ओरोपों को साजिश करार देते हुए कहा कि वह रात में पटना से रांची राज्यपाल महोदय से मिलने जा रहा था और इसी दौरान उसकी गिरफ्तारी की गयी। इधर एक अन्य मामले में तिलैया पुलिस ने मुख्य मार्ग पर अवैध रूप से वाहनों से वसूली करने के आरोप में 14 लोगों को पकडा जिन्हे बाद में चेतावनी देकर और निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया।

..और ग्रामीणों ने अपने बूते किया सड़क निर्माण

प्रशासनिक पदाधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों का आश्वासन पूरा नहीं होते देख ग्रामीणों ने अंतत: अपने ही बलबूते सड़क निर्माण करने का बीड़ा उठाकर समाज को एक अच्छा संदेश देने का काम किया है। यह अनूठी व अनुकरणीय पहल जमुआ प्रखंड अंतर्गत डेगारडीह मौजा के लोरियामों टोले के महिला पुरुषों ने की है। करिहारी पंचायत के लगभग 250 आबादी वाला लोरियामों गांव विकास से अछूता है। मुख्य मार्ग से लगभग डेढ़ किमी दूर अवस्थित इस गांव को जोड़ने वाली पगडंडी की स्थिति भयावह है। ग्रामीण बताते हैं कि नरेगा के तहत एक भी विकास कार्य इस गांव में नहीं हुआ है। विधायक से लेकर सांसद ने यहां के ग्रामीणों को विकास के सपने दिखाए। लेकिन हालत जस की तस है। एक मात्र रास्ता से होकर खासकर बरसात के दिनों में गुजरना यहां के ग्रामीणों के लिये काफी मुश्किल था। ग्रामीणों ने बैठक कर सड़क निर्माण खुद करने का फैसला लिया। सोमवार को दर्जनों की संख्या में महिला, पुरुष एवं बच्चों ने हाथ में कुदाल, टोकरी थामा और सड़क निर्माण में जुट गये। फिर क्या था युद्धस्तर पर कार्य चला। लोरियामों गांव के लोगों की इस अनूठी पहल की ग्रामीणों को सराहना की। साथ ही प्रशासन के उस दावे को भी कठघरे में खड़ा करने का काम किया जो मजदूरों का रोना रोकर नरेगा को इमानदारी से गति देने की इच्छा नहीं रखते। लोरियामों गांव के लोगों का यह सराहनीय कार्य उन जनप्रतिनिधियों के लिए भी करारा जवाब है।

झुमरीतिलैया में घनी आबादी से चार फीट लंबा वज्रकीट पकड़ा गया


वन्यप्राणी आश्रयणी कोडरमा के कर्मियों एवं स्थानीय लोगों के सहयोग से लुप्तप्राय वज्रकीट (मोनिटर लिजार्ड) को झुमरीतिलैया शहर के एक घनी आबादी वाले इलाके से पकड़ा गया। बाद में उसे वन्यप्राणी आश्रयणी क्षेत्र कोडरमा में छोड़ दिया गया। झुमरीतिलैया देवी मंडप रोड स्थित तापस पाल के घर में कहीं से भटकते हुआ करीब चार फीट लंबा मोनिटर लिजार्ड घुस गया था। इसकी सूचना मिलने के बाद वन विभाग की टीम गई और स्थानीय लोगों की मदद से तीन घंटे की मशक्कत के बाद उक्त जीव को सुरक्षित पकड़ लिया। मूलतः यह जीव छिपकली प्रजाति का होता है। मांसाहारी होने के कारण सांप, चूहा और छोटे-छोटे पक्षियों को अपना शिकार बनाता है। वन्यप्राणी के सिड्यूल-2 के भाग का यह प्राणी है। यह जंगल में या फिर पत्थर की दरारों में पाया जाता है। खाने-पीने के चक्कर में घनी आबादी या शहरों में चला जाता है। यह विषैला तो नहीं होता, लेकिन इसके लार से संक्रमण हो जाता है। शरीर फूल जाते हैं और जख्म हो जाता है।

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

कोडरमा में दो दशक से जारी है पत्थरों की लूट

कोडरमा जिले के सदर थाना क्षेत्र के अंतर्गत इंदरवा-लोकाई स्थित वन्य प्राणी आश्रयणी क्षेत्र में चमकीले कीमती पत्थरों की अवैध खुदाई करीब दो दशक से जारी है। यहां 25 एकड़ से ज्यादा भूभाग में प्रतिदिन हजारों की संख्या में स्थानीय लोग खुदाई का कार्य करते है, जिससे खदान काफी गहरी हो चुकी है। प्रतिदिन लाखों रुपये के कीमती पत्थर जयपुर की मंडियों में भेजकर औने-पौने मूल्य में बेच दिया जाता है। इन्हीं पत्थरों को तराश कर वहां के व्यापारी भारी कीमत वसूलते हैं। इस अवैध खुदाई की ओर सरकार एवं जिला प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है। वन विभाग कार्रवाई करने में खुद को असमर्थ बताता है। यहां मुख्यत: मून स्टोन, ब्लू स्टोन, गारनेट, दोरगनिक बेरिल, रक्तमणि जैसे चमकीले और बहुमूल्य पत्थर काफी मात्रा में पाए जाते है, जिनकी जयपुर की मंडियों में शुरुआती दौर में काफी मांग थी। इधर, स्थानीय लोग उन कीमती पत्थरों को झोला, बैग एवं ब्रीफकेस में भरकर अवैध तरीके से वहां तक पहुंचाने जाते है। जब यहां उत्खनन बड़े पैमाने पर होने लगा तो मांग घट गई। वन्यप्राणी आश्रयणी क्षेत्र में इतने बड़े पैमाने पर अवैध उत्खनन के संबंध में बात करने पर संबंधित वन प्रमंडल पदाधिकारी एके मिश्रा ने अवैध उत्खनन पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इस संबंध में कई बार कोडरमा जिला प्रशासन और वहां के खनन पदाधिकारी को पत्राचार कर चुके है, क्योंकि कार्रवाई संयुक्त प्रयास से ही संभव है। पूर्व में एक-दो बार कोडरमा जिला प्रशासन और पुलिस के साथ डीएफओ और वन संरक्षक स्वयं वहां कार्रवाई के लिए गए थे, लेकिन स्थानीय लोगों के तीव्र विरोध और पत्थरबाजी के कारण प्रशासन को पीछे हटना पड़ा था। पूर्व में तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने उक्त क्षेत्र को अधिसूचित वन क्षेत्र से बाहर लाकर स्थानीय लोगों को खनन पट्टा देने की बात कही थी, लेकिन जेएसएमडीसी की ओर से इस तरह की कोई पहल नहीं की गई। वैसे वन क्षेत्र के डिनोटिफिकेशन की प्रक्रिया भारत सरकार के स्तर पर होती है, जो काफी जटिल है। इससे भी स्थानीय ग्रामीण निश्चिंत होकर माइनिंग कर रहे है। डीएफओ श्री मिश्र ने स्वीकार किया कि कोडरमा आश्रयणी क्षेत्र में 15-20 स्थानों पर अवैध माइनिंग हो रही है, लेकिन उनके विभाग में कर्मचारियों की कमी के कारण वे अकेले कुछ कदम नहीं उठा पा रहे। इस कारण उग्र स्थानीय लोगों से निपटना संभव नहीं है।

रोमांचित कर देनेवाली शक्तिपीठ माता चंचला देवी


कोडरमा जिला मुख्यालय से तकरीबन 33 कि0मी0 दूर रोमांचित और विस्मित कर देनेवाली शक्तिपीठ माता चंचला देवी की पहाड़ी है, जो श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों दोनों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं। मां चंचला देवी दुर्गा की एक रूप मानी जाती है। कोडरमा गिरिडीह मुख्य मार्ग पर स्थित कानींकेन्द मोड़ से 8 कि0मी0 कच्ची सड़क के चहुओर बीहड़ जंगलों से गुजरते हुए मां चंचला देवी की पहाडी तक पूजा अर्चना के लिए जाया जाता है। लगभग 400 फीट की उंचाई वाले पहाड़ी के मध्य मां चंचला देवी का स्थान है। यहां से थोड़ी दूर एक बड़ी गुफा है। गुफा के अंदर प्रस्तरों पर उत्कीर्ण भित्ती चित्रा में मां दुर्ग के सात अलग-अलग रूपों का दर्शन होता है। यहां पर भक्तगण घी के दीपक जलाते हैं। हांलाकि गुफा में प्रवेश का रास्ता अति संकीर्ण है फिर भी घुटनों के बल रेंगकर श्रद्धालुगण दीपक जलाने के लिए अंदर जाते हैं। घने जंगलों से सुसज्जित इस काली पहाड़ी के शिखर पर एक अन्य लंबी कंदरा है जहां देवाधि देव महादेव का शिवलिंग विराजमान है। पूजा-अर्चना करना यहां पर एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। बावजूद प्रतिवर्ष 20 से 25 हजार की संख्या में श्रद्धालु एवं पर्यटक यहां पहुंचते हैं। इस धार्मिक स्थली के प्रति श्रद्धालुओं में अटूट विश्वास कायम है कि यह शक्तिपीठ फलदायिनी है। मन्नतें मांगने पर इच्छित मुरादें पूर्ण होती हैं। सैकड़ों वर्ष पूर्व से यहां पूजा अर्चना की परिपाटी चली आ रही है। 1956-57 में खेशमी राजवंश ने यहंा लोहे की दो सीढ़ियां बनवायी। यहां पशुबलि प्रथा प्रचलित है और पूजा-अर्चना में सिन्दूर का प्रयोग पूर्णतः वर्जित है। प्रसाद में अरवा चावल एवं मिश्री चढाया जाता है। खासकर शनिवार एवं मंगलवार को यहां विशेष भीड़ लगती है। स्नानादि से निवृत होकर बिना अन्न-जल ग्रहण किए ही पूजा में शामिल हुआ जा सकता है। अन्यथा यहां पर विराजमान मौन भैारे लहुलुहान करने से नहीं चुकते। पूजा-अर्चना के अतिरिक्त सैकडों की संख्या में शादी-विवाह, मुण्डन संस्कार एवं अन्य मांगलिक कार्य भी यहां संपन्न होते हैं। पर्यटन विकास की असीम संभावनायें यहां विद्यमान हैं। अन्य धार्मिक स्थलों के बनिस्पत यहां की नैसर्गिक सुषमायें काफी खूबसूरत एवं मंत्रमुग्ध कर देने वाली हैं। लेकिन पर्यटकों की सुविधा के लिए आवश्यक व्यवस्थायें उपलब्ध नहीं हैं। वेद-पुराण से संबंधित धार्मिक महत्ववाले इस स्थल को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने से सरकार को अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति हो सकती है।

विशिष्ट पुरातात्विक और धार्मिक स्थल है घोरसीमर का देवघर धाम


कोडरमा जिला में और मुख्यालय से 85 कि0 मी0 दूर सतगांवा प्रखंड अन्तर्गत घोरसीमर का देवघर धाम विशिष्ट पुरातात्विक सह धार्मिक स्थल है। प्राकृतिक नजारों से सराबोर देवघर धाम पहाड़, नदी एवं बहुतायत मात्रा में यत्र-तत्र बिखरे पुरातात्विक अवशेषों का चश्मदीद गवाह है। बलखाती सकरी नदी एवं सुसुप्त चट्टानों की जद में अवस्थित पहाड़ धार्मिक स्थली देवघर धाम के रूप में प्रसिद्धी पा रहा है। पहाड़ पर शिव पार्वती की प्रस्तर की मूर्तियां मंदिर में विराजमान है। यहां पर लगभग एक मीटर की गोलाईवाला चार फीट लंबा शिवलिंग है और समीप के बटेश्वर नामक स्थान पर लगभग इसी आकार का एक अन्य शिवलिंग है। भव्य शिवलिंग श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। पहाड़ के आसपास तलहट्टी में सैकडों की संख्या में प्रस्तर पर उत्कीर्ण या प्र्रस्तर की मूर्तियां जीर्ण-शीर्ण अवस्था में इधर-उधर बिखरे पड़े हैं। बड़ी-बड़ी शिलाओं पर बेहतरीन ढंग से नक्काशी कर बनाये गए विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां प्राचीन शिल्प कला के उत्कृष्ट नमूने की याद दिलाते हैं। यहां पर बिखरे पड़े अवशेषों में शिव के विभिन्न रूपों के अलावा पार्वती, विष्णु, यक्ष-यक्षिणी आदि हैं। अधिकांश मूर्तियों की पहचान अब तक नहीं की जा सकी है। एक किला का अवशेष भी यहां मिला है। संभवतः यह किसी शासक का रहा होगा। भूमि के अंदर भी सैकडों मूर्तियां दबी पड़ी हैं। यदा-कदा खेतों में काम करते वक्त किसानों को प्रस्तर की टूटी-फूटी मूर्तियां प्राप्त होती हैं। इनमें पांच-पांच फीट की शिलाओं पर नक्काशी की कवदंतियों के अनुसार रावण घोरसीमर नामक स्थान में विश्राम के पश्चात् भगवान शंकर को जब यहां से बलपूर्वक ले जाने लगा तो शंकर ने अपना विभिन्न रूप यहां छोड़ दिया और कालांतर में इसका नाम देवघर धाम पडा। यहां सैंकड़ो वर्ष से पूजा-अर्चना की परंपरा चली आ रही है। पूजा-अर्चना करने से मनोवंछित फल की प्राप्ति होती है, ऐसा ग्रामीणों का विश्वास है। यही कारण है कि पूजा-अर्चना, विवाह, मुंडन आदि कार्यों के लिए काफी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ प्रतिदिन उमड़ती है। शिवरात्रि में मेला का आयेाजन होता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं। देवघर धाम पहुंचने के लिए प्रखंड मुख्यालय एवं गोविन्दपुर सड़क के मध्य से एक अन्य रास्ता तय करना पडता है। हाल ही में पुरातत्व विभाग द्वारा मन्दिर के निकट खुदायी भी करवायी गयी जिसमें छठी सदी के कई अवषेष मिले हैं। इस स्थल को न ही पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सका है, फिर भी यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि यह स्थल ऐतिहासिक महत्वों को अपने गर्भ में समेटे हुए है। संभवतः भूस्खलन की चपेट में आकर एक सभ्यता का अंत यहां हुआ है।